Thursday 13 October 2011

मानवता को नई राह दिखाती कैंसर सर्जन डॉ. सुनीता यादव





मानवता को नई राह दिखाती कैंसर सर्जन डॉ. सुनीता यादव
भोपाल शहर की कैंसर सर्जन डॉ. सुनीता यादव को चिकित्सा के क्षेत्र में विशेष ढंग से काम करने और गरीब कैंसर मरीजों को स्वयं चिकित्सा खर्च वहन करते हुए इलाज और सेवा देने के लिए जाना जाता है. वे शायद इस मुहावरे को चरितार्थ करती नजर आती हैं की डाक्टर भगवन का ही दूसरा रूप है. वस्तुत: बचपन में ही सुनीता यादव ने अपने दादाजी को कैंसर का इलाज नहीं मिल पाने के कारण खोया था। इसी बीमारी के चलते अपनी नानी को भी खोया और तभी से तय कर लिया कि बड़े होकर कैंसर सर्जन ही बनना है। 1985 में ग्वालियर के गजराराजा मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई पूरी करने के बाद 1994 में प्रैक्टिस शुरू की और 1995 से भोपाल में प्रैक्टिस शुरू कर दी। कैंसर सर्जन बनने के बाद कई गरीब कैंसर मरीजों को कम से कम खर्च पर इलाज दिया। सुनीता यादव 80 हजार रुपए में होने वाली सर्जरी को फिलहाल पांच से छह हजार रुपए में कर रही हैं। डॉ. यादव के पास अक्सर महीने में ऐसे दो-तीन केस आते हैं जिनके इलाज का खर्च माफ करना पड़ता है। डा0 सुनीता यादव इंडियन रेडक्रास सोसायटी में भी वे बतौर कंसल्टेंट अपनी सेवाएं दे रही हैं। वे कहती हैं, कैंसर पीड़ित महिलाओं को देखकर दुख होता है क्योंकि वे पारिवारिक जिम्मेदारियों ने इतनी उलझी रहती हैं कि चौथी स्टेज में इलाज के लिए आती हैं। महिलाओं को सलाह है कि वे अपने स्वास्थ्य को नजरअंदाज न करें और प्रारंभिक लक्षण दिखने पर ही इलाज के लिए आएं।
डा0 सुनीता यादव को उनकी उल्लेखनीय सेवाओं के लिए तमाम संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है. 21 मई, 2009 को उनकी उल्लेखनीय सेवाओं के लिए उपराष्ट्रपति मोहम्मद हमीद अंसारी द्वारा नई दिल्ली स्थित आंध्र प्रदेश भवन में सम्मानित किया जाएगा। उन्हें यह सम्मान राष्ट्रीय समता स्वतंत्र मंच के 82 वें शिखर सम्मेलन में दिया गया , जिसमें चिकित्सा, उद्योग, शिक्षा, समाज सेवा और न्याय के लिए अनुकरणीय कार्य करने वाले व्यक्तियों को सम्मानित किया जाता है।
गौरतलब है कि इस सम्मान के लिए नामांकित होने पर पूर्व लोकसभा अध्यक्ष बलिराम भगत ने स्वयं उनका इंटरव्यू लिया था। डा0 सुनीता यादव ने न सिर्फ चिकित्सा जगत वरन पूरी मानवता को नई राह दिखाई है और ऐसे लोग ही समाज में प्रेरणा-स्रोत बनते हैं !!

अमिताभ व किंग्सले को निर्देशित कर रही हैं लीना यादव


अमिताभ व किंग्सले को निर्देशित कर रही हैं लीना यादव

महानायक अमिताभ बच्चन और ऑस्कर विजेता अभिनेता बेन किंग्सले को लेकर निर्मित फिल्म तीन पत्ती इस बात की ओर इशारा करती है कि देश में और फिल्म जगत में महिलाओं का रुतबा बढ़ रहा है। इस फिल्म की निर्माता और निर्देशक भी महिलाएं हैं। तीन पत्ती के फ‌र्स्ट लुक के विमोचन के मौके पर स्वयं अमिताभ बच्चन ने संवाददाताओं से कहा, 'हम एक ऐसे देश में रहते हैं जहां 50 प्रतिशत जनसंख्या महिलाओं की है और वे सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहीं हैं। 'तीन पत्ती' की सहायक निर्देशक भी महिलाएं हैं और मैं उनकी क्षमता से बहुत प्रभावित हूं।'
फिल्म की निर्देशक 'शब्द' बनाने वाली लीना यादव हैं। गौरतलब है कि 1982 में रिचर्ड एटनबरो की गाँधी फिल्म में महात्मा गांधी का किरदार निभा कर मशहूर हुए ऑस्कर विजेता बेन किंग्सले लीना यादव की फिल्म 'तीन पत्ती' के जरिए ही बॉलीवुड में दस्तक दे रहे हैं. लीना यादव इस हॉलीवुड अभिनेता के साथ काम करने वाली तीसरी महिला निर्देशक हैं। कहा जा रहा है कि 25 करोड़ रूपये की लागत वाली फिल्म 'तीन पत्ती' हॉलीवुड की '21' से प्रेरित है। फिल्म का प्रदर्शन 26 फरवरी को होगा, जिसमें अमिताभ बच्चन गणित के प्रोफेसर बने हैं और प्रायिकता के सिद्धांत पर शोध करते हैं।तीन पत्ती की निर्देशक लीना यादव ने बताया, इस फिल्म में दर्शकों को लालच, धोखा और कल्पना का अद्भुत समन्वय देखने को मिलेगा। फिल्म की शूटिंग भारत व ब्रिटेन में हुई है। तीन पत्ती के अन्य किरदारों में माधवन व राइमा सेन हैं। अंबिका ए. हिंदुजा के सेरेंडिपिटी फिल्म्स के बैनर तले बनी तीन पत्ती में संगीत सलीम-सुलेमान का है व सिनेमेटोग्राफी असीम बजाज की है।
इस फिल्म में लीना यादव के पति का भी काफी सहयोग है. उनके पति असीम बजाज इस फिल्म के कैमरामैन हैं। लीना यादव का मानना है कि उनके साथ रहने से काफी मदद मिलती है। सेट पर ढेर सारी जिम्मेदारियां वे उठाते हैं। दृश्यों की टेकिंग को लेकर हमारे मतभेद और झगड़े होते हैं, लेकिन यह सब सेट तक ही रहता है। उनकी वजह से मुझे काफी मदद मिलती है। उन्होंने ही मुझे शब्द के निर्देशन के लिए प्रोत्साहित किया था। तब हम यह सोचकर प्रीतीश नंदी से मिलने गए थे कि पूरे प्रोसेस में दो-तीन साल लग जाएंगे, लेकिन फिल्म फटा-फट बन गई।

चार यादव विभूतियों पर जारी हुए डाक टिकट

चार यादव विभूतियों पर जारी हुए डाक टिकट
राष्ट्र को अप्रतिम योगदान के मद्देनजर डाक विभाग विभिन्न विभूतियों पर स्मारक डाक टिकट जारी करता है। अब तक चार यादव विभूतियों को यह गौरव प्राप्त हुआ है। इनमें राम सेवक यादव (2 जुलाई 1997), बी0पी0 मण्डल (1 जून, 2001), चै0 ब्रह्म प्रकाश (11 अगस्त, 2001) एवं राव तुलाराम (23 सितम्बर, 2001) शामिल हैं।
जिस प्रथम यदुवंशी के ऊपर सर्वप्रथम डाक टिकट जारी हुआ, वे हैं राम सेवक यादव। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जनपद में जन्मे राम सेवक यादव ने छोटी आयु में ही राजनैतिक-सामाजिक मामलों में रूचि लेनी आरम्भ कर दी थी। लगातार दूसरी, तीसरी और चैथी लोकसभा के सदस्य रहे राम सेवक यादव लोक लेखा समिति के अध्यक्ष, विपक्ष के नेता एवं उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य भी रहे। समाज के पिछड़े वर्ग के उद्धार के लिए प्रतिबद्ध राम सेवक यादव का मानना था कि कोई भी आर्थिक सुधार यथार्थ रूप तभी ले सकता है जब उससे भारत के गाँवों के खेतिहर मजदूरों की जीवन दशा में सुधार परिलक्षित हो। इस समाजवादी राजनेता के अप्रतिम योगदान के मद्देनजर उनके सम्मान में 2 जुलाई 1997 को स्मारक डाक टिकट जारी किया गया।

वर्ष 2001 में तीन यादव विभूतियों पर डाक टिकट जारी किये गये। इनमें बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री एवं मण्डल कमीशन के अध्यक्ष बी0पी0 मण्डल का नाम सर्वप्रमुख है। स्वतन्त्रता पश्चात यादव कुल के जिन लोगों ने प्रतिष्ठित कार्य किये, उनमें बी0पी0 मंडल का नाम प्रमुख है। बिहार के मधेपुरा जिले के मुरहो गाँव में पैदा हुए बी0पी0 मंडल 1968 में बिहार के मुख्यमंत्री बने। 1978 में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष रूप में 31 दिसम्बर 1980 को मंडल कमीशन के अध्यक्ष रूप में इसके प्रस्तावों को राष्ट्र के समक्ष उन्होंने पेश किया। यद्यपि मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने में एक दशक का समय लग गया पर इसकी सिफारिशों ने देश के समाजिक व राजनैतिक वातावरण में काफी दूरगामी परिवर्तन किए। कहना गलत न होगा कि मंडल कमीशन ने देश की भावी राजनीति के समीकरणांे की नींव रख दी। बहुत कम ही लोगों को पता होगा कि बी0 पी0 मंडल के पिता रास बिहारी मंडल जो कि मुरहो एस्टेट के जमींदार व कांग्रेसी थे, ने ‘‘अखिल भारतीय गोप जाति महासभा’’ की स्थापना की और सर्वप्रथम माण्टेग्यू चेम्सफोर्ड समिति के सामने 1917 में यादवों को प्रशासनिक सेवा में आरक्षण देने की माँग की। यद्यपि मंडल परिवार रईस किस्म का था और जब बी0पी0 मंडल का प्रवेश दरभंगा महाराज (उस वक्त दरभंगा महाराज देश के सबसे बडे़ जमींदार माने जाते थे) हाई स्कूल में कराया गया तो उनके साथ हाॅस्टल में दो रसोईये व एक खवास (नौकर) को भी भेजा गया। पर इसके बावजूद मंडल परिवार ने सदैव सामाजिक न्याय की पैरोकारी की, जिसके चलते अपने हलवाहे किराय मुसहर को इस परिवार ने पचास के दशक के उत्तरार्द्ध में यादव बहुल मधेपुरा से सांसद बनाकर भेजा। राष्ट्र के प्रति बी0पी0 मंडल के अप्रतिम योगदान पर 1 जून 2001 को उनके सम्मान में स्मारक डाक टिकट जारी किया गया।एक अन्य प्रमुख यादव विभूति, जिनपर डाक टिकट जारी किया गया, वे हैं दिल्ली के प्रथम मुख्यमंत्री- चै0 ब्रह्म प्रकाश। 1952 में मात्र 34 वर्ष की आयु में मुख्यमंत्री पद पर पदस्थ चैधरी ब्रह्म प्रकाश 1955 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे। बाद में वे संसद हेतु निर्वाचित हुए एवं खाद्य एवं केन्द्रीय खाद्य, कृषि, सिंचाई और सहकारिता मंत्री के रूप में उल्लेखनीय कार्य किये। 1977 में उन्होंने पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों व अल्पसंख्यकों का एक राष्ट्रीय संघ बनाया ताकि समाज के इन कमजोर वर्गों की भलाई के लिए कार्य किया जा सके। राष्ट्र को अप्रतिम योगदान के मद्देनजर 11 अगस्त 2001 को चैधरी ब्रह्म प्रकाश के सम्मान में स्मारक डाक टिकट भी जारी किया गया।

1857 की क्रान्ति में हरियाणा का नेतृत्व करने वाले रेवाड़ी के शासक यदुवंशी राव तुलाराव के नाम से भला कौन वाकिफ नहीं होगा। 1857 की क्रान्ति के दौरान राव तुलाराम ने कालपी में नाना साहब, तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई के साथ मंत्रणा की और फैसला हुआ कि अंग्रेजों को पराजित करने के लिए विदेशों से भी मदद ली जाये। एतदर्थ सबकी राय हुई कि राव तुलाराम विदेशी सहायता प्रबंध करने ईरान जायंे। राव साहब अपने मित्रों के साथ अहमदाबाद होते हुए बम्बई चले गये। वहां से वे लोग छिपकर ईरान पहुंचे। वहां के शाह ने उनका खुले दिल से स्वागत किया। वहां राव तुलाराम ने रूस के राजदूत से बातचीत की । वे काबुल के शाह से मिलना चाहते थे। एतदर्थ वे ईरान से काबुल गये जहां उनका शानदार स्वागत किया गया। काबुल के अमीर ने उन्हें सम्मान सहित वहां रखा। लेकिन रूस के साथ सम्पर्क कर विदेशी सहायता का प्रबंध किया जाता तब तक सूचना मिली कि अंग्रेजांे ने उस विद्रोह को बुरी तरह से कुचल दिया है और स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को पकड़-पकड़कर फांसी दी जा रही है। अब राव तुलाराम का स्वास्थ्य भी इस लम्बी भागदौड के कारण बुरी तरह प्रभावित हुआ था। वे अपने प्रयास में सफल होकर कोई दूसरी तैयारी करते तब तक उनका स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हो गया था। वे काबुल में रहकर ही स्वास्थ्य लाभ कर कुछ दूसरा उपाय करने की सोचने लगे। उस समय तुरंत भारत लौटना उचित भी नहीं था। उनका काबुल में रहने का प्रबंध वहां के अमीर ने कर तो दिया पर उनका स्वास्थ्य नहीं संभला और दिन पर दिन गिरता ही गया। अंततः 2 सितम्बर 1863 को उस अप्रतिम वीर का देहंात काबुल में ही हो गया। वीर-शिरोमणि यदुवंशी राव तुलाराम के काबुल में देहान्त के बाद वहीं उनकी समाधि बनी जिस पर आज भी काबुल जाने वाले भारतीय यात्री बडी श्रद्वा से सिर झुकाते हैं और उनके प्रति आदर व्यक्त करते हैं। राव तुलाराम की वीरता एवं अप्रतिम योगदान के मद्देनजर 23 सितम्बर, 2001 को उनके सम्मान में स्मारक डाक टिकट जारी किया गया।

दिनेशलाल यादव निरहुआ - सफलता के आकाश पर नई उडान


दिनेशलाल यादव निरहुआ - सफलता के आकाश पर नई उडान
भोजपुरी सिनेमा के सुपर स्टार दिनेशलाल यादव निरहुआ अब क्षेत्रिय सिनेमा की सीमाएं लांघ कर राष्ट्रीय सिनेमा की मुख्य धारा में आ रहे है। इस कोशिश का पहला कदम उनका नया म्यूजिक अलबम 'हे अम्बे तेरा प्यार चाहिए' है । टी. सीरिज द्वारा जारी इस नए अलबम के सारे गीत हिन्दी में है । नौ में से पांच गीत दिनेशलाल यादव के स्वर में हैं और इन गीतों के गीतकार प्यारेलाल यादव है।'' भोजपुरी में टी. सीरिज से अब तक मेरे साठ से अधिक अलबम आ चुके ह किन्तु हिन्दी में यह मेरा पहला प्रयास है ।''
दिनेशलाल यादव बताते हुए स्पष्ट करते है ''मैं काफी समय से इस बात का प्रतीक्षा में था कि कंपनी मुझे अपने किसी हिन्दी अलबम के लिए गाने का प्रस्ताव देगी और इस नए अलबम से मुझे यह अवसर मिल गया है । हिन्दी में गाने की मेरी इच्छा इसलिए भी थी कि मेरे जो प्रशंसक भोजपुरी ठीक से नहीं समझ पाते वे हिन्दी में सुन कर समझ सकें । चूंकि देश - विदेश में मेरे लाखों करोडों प्रशंसकों को मेरी गायकी और शैली का एक खास अंदाज पसंद आता है, इसीलिए मैंने हिन्दी में गाते समय भी अपना वही अंदाज और वही शैली प्रयोग की है । मुझे मालूम है कि हिन्दी में एक से एक योग्य और मंजे गायक मौजूद है और उनके बीच अपनी जगह बनाना आसान काम नहीं है किन्तु मैं कोशिश तो कर ही सकता हूं । ''अलबम 'हे अम्बे तेरा प्यार चाहिए' नवरात्री के अवसर पर जारी एक सामयिक अलबम है । इसीलिए अलबम के सभी नौ गानों का वीडियो भी बनाया जा रहा है ।
इधर अभिनेता के रुप में निरहुआ की पारी हर नई फिल्म के साथ मजबूत होती जा रही है । हाल ही में प्रदर्शित निरहुआ की चार नई फिल्मों 'निरहुआ चलल ससुराल', 'लागल रहा राजा जी ''विधाता 'और' खिलाडी न.1' ने एक साथ प्रदर्शन के सौ दिन पूरे किए है और ये भोजपुरी सिनेमा में किसी भी अभिनेता का नया रेकार्ड है। ''मेरी अभिनेता के रुप में अब तक 15 फिल्में प्रदर्शित हो चुकी हैं और आम दर्शक मुझे एक आदमी के पात्र में ही देखना पसंद करते ह । इसीलिए आज भी मैं अपनी मिट्टी और अपनी जमीन से जुडे पात्रों को ही निभा रहा हूं । यह सिलसिला पहली फिल्म 'चलत मुसाफिर मोह लियो रे' से ही चल रहा है । दूसरी फिल्म 'हो गइलबा प्यार ओढनिया वाली से' जब हिट हुई तब भी मैंने अपना ट्रेक नहीं बदला। आज मैं अभिनेता के रुप में सफलता की मंजिले तय करते समय भी इस संबंध में बहुत सतर्क और सावधान हूं । सफलता और लोकप्रियता के आकाश को छू लेने के बावजूद अपने पांवों को जमीन से जोडे रखा हैं । एक - एक फिल्म बहुत ही सोच समझ कर लेता हूं । अब तक जो भी भूमिकाएं की हैं उनमें से किसी को भी दोहराया नहीं है । अब तक जितनी फिल्में की हैं उनसे चार गुना अधिक फिल्में छोडी हैं । मैं अभिनय के प्रति पूरी तरह समर्पित हूं ।''
वास्तव में अभिनय के प्रति पूर्ण समर्पण की यह भावना हाल ही में उस समय भी सामने आ गई जब नई फिल्म ' नरसंहार ' के लिए निरहुआ ने अपने सिर के बालों का बलिदान दे दिया । इस फिल्म की भूमिका को सशक्त स्वाभाविक और जीवंत बनाने के लिए अपने सुन्दर और लंबे बालों को कटवा दिया ।'' इस फिल्म के लिए मुझे दस फिल्में छोडना पड । क्योंकि बाल कटाने के बाद मैं ' नरसंहार ' के अलावा अन्य किसी फिल्म की शूटिंग नहीं कर सकता था ।' नरसंहार' यू पी -बिहार में आज के दौर की एक जवलन्त समस्या पर आधारित है । हर दिन कहीं न कहीं सामूहिक हत्याएं होती रहती हैं । इसी जवलन्त समस्या की पृष्ठभूमि में ' नरसंहार 'की कहानी लिखी गई है । फिल्म के हीरो के संपूर्ण परिवार की हत्या कर दी जाती है । किस्मत से हीरो बुरी तरह घायल हो कर भी बच जाता है । उसी दशा में सिर मुंडवा कर वह अपने प्रियजनों का दाहसंस्कार करता है और इसी दाह संस्कार की ज्वाला के साथ ही साथ परिवार के हत्यारों से बदला भी लेता है ।' नरसंहार 'मेरी अब तक प्रदर्शित सभी फिल्मों बिल्कुल अलग एक एक्शन इमोशन से भरपूर विचारोंत्तेजक फिल्म है ।''
निरहुआ की शीघ्र आने वाली फिल्में ' रंग दे बसंती चोला ' और ' 'हम है बाहुबली 'ह । इनके अलावा ' निरहुआ तांगेवाला ', 'चलनी के चालल दुल्हा' , 'हो गई नी दीवाना तोहरे प्यार में ', ' दीवाना ', 'प्रतिज्ञा' और ' अमर -अकबर - अंथनी 'सेट पर निर्माणाधीन है ।' चलनी के चालल दुल्हा 'के साथ निरहुआ ने निर्माता के रुप में भी नयी उडान भर ली है और इस फिल्म के निर्माण के साथ अपने छोटे भाई प्रवेशलाल यादव को भी अभिनेता बना दिया है ।'' अपनी निर्माण संस्था 'निरहुआ एंटरटेनमेंट 'को आरंभ करने के पीछे मेरा एक ही लक्ष्य है कि मैं ऐसी अच्छी और स्तरीय फिल्में बनाऊं जो भोजपुरी सिनेमा को और उं'चा स्तर दे सकें । हमारी कंपनी फिल्म निर्माण के साथ म्यूजिक अलबम भी बनाएगी । अभी तो भोजपुरी फिल्मों की ही योजना है । भविष्य में कंपनी हिन्दी फिल्मों का निर्माण भी करेगी । किन्तु अभी कुछ निश्चित नहीं है । क्योंकि अभी तो कंपनी ने निर्माण के पथ पर अपना पहला ही कदम रखा है । यह कदम भविष्य में कंपनी को कहां ले जाएंगे अभी कहना संभव नहीं है ।''आजकल निरहुआ के अभिनय की उडान दक्षिण भारतीय सिनेमा के आकाश तक पहुंच गई है । वे दक्षिण भारत में बन रही भोजपुरी फिल्म के लिए डांस और एक्शन की विशेष ट्रेंनिग ले रहे ह । उनकी दो फिल्में जो हैदराबाद में शूट हुई है वहीं तेलगू में डब होकर चल रही है ।
इधर निरहुआ ने बिहार के बाढ पीडित लोगों के लिए अपनी एक फिल्म का पारिश्रमिक 50 लाख रुपए दान देने की घोषणा की है । शीघ्र ही निरहुआ अपनी एक फिल्म के प्रीमियर हेतु बिहार जाएंगे और अपने हाथों से बाढ पीडितों को इस राशि से आवश्यक्ता अनुसार सहायता देंगे । निरहुआ का यह प्रयास इस बात का प्रमाण है कि वे केवल सिनेमा के पर्दे पर ही नहीं बल्कि समाज के कैनवस पर भी एक सच्चे हीरो हैं ।
साभार प्रस्तुतिः राजकुमार/ http://www.khabarexpress.com/

Monday 10 October 2011

अश्विनी कुमार यादव को बेस्ट कलेक्टर का अवार्ड

अश्विनी कुमार यादव को बेस्ट कलेक्टर का अवार्ड
अश्विनी कुमार यादव को गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा वर्ष 2009-2010 के लिए बेस्ट कलेक्टर का अवार्ड प्राप्त हुआ है। यह अवार्ड उन्हें जूनागढ़ के जिलाधिकारी के कार्यकाल हेतु दिया गया है. इस हेतु अश्विनी कुमार को 51,000 रूपये का नकद इनाम और जूनागढ़ जिले के लिए 20 लाख रूपये का इनाम दिया गया है. गौरतलब है कि अश्विनी कुमार को वर्ष 2007-08 के लिए भी पूर्व में बेस्ट कलेक्टर का अवार्ड दिया जा चूका है और उससे पूर्व वर्ष 2002-03 के लिए बेस्ट जिला विकास अधिकारी का अवार्ड भी प्राप्त हो चुका है.
आई. आई. टी. कानपुर से बी.टेक पश्चात् 1997 बीच के IAS अधिकारी रूप में चयनित अश्विनी कुमार कि गिनती तेज-तर्रार अधिकारीयों में होती है. स्वाभाव से नम्र और संवेदनशील अश्विनी कुमार मूलत: उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जनपद के सैदपुर क्षेत्र के निवासी हैं. उनके पिताश्री श्री राजेंद्र प्रसाद और माताश्री श्रीमती सावित्री देवी सैदपुर में नगर पंचायत अध्यक्ष का पद सुशोभित कर चुके हैं. अश्विनी कुमार के भाई समीर सौरभ उत्तर प्रदेश पुलिस में उप पुलिस अधीक्षक तो बड़े भाई पीयूष कुमार बहुराष्ट्रीय कंपनी में उप महाप्रबंधक हैं. अश्विनी कुमार चर्चित ब्लागर और लेखिका आकांक्षा यादव के बड़े भ्राता हैं.
अश्विनी कुमार जी को इस उपलब्धि पर हार्दिक बधाई और शुभकामनायें...!!